
जैविक खेती में आपका स्वागत है।
जिस प्रकार किसी व्यक्ति को बैक्टीरियल संक्रमण होने पर विभिन्न जड़ी-बूटियां का काढ़ा दिया जाता है। ठीक इस प्रकार फसलों में लगने वाले कीटाणुओं की रोकथाम के लिए फार्म पर ही तैयार जैविक सुपर काढ़े का प्रयोग किया जाता है।
कीटनाशक सुपर काढ़ा बनाने की विधि :
सुपर काढ़ा बनाने के लिए नीम, पपीता, धतूरा, तंबाकू वह ग्वारपाठे का अर्क यानी रस निकालकर 25 लीटर गोमूत्र में डालकर 20 से 25 दिनों तक स्टोर करें। इसके बाद इसे छान कर रख ले। इस कीटनाशक सुपर काढ़े का प्रयोग सभी प्रकार की फसलों के पत्ता लपेट कीटों, तना छेदक कीटों, गोभ का रस चूसने वाले कीटों के नियंत्रण के लिए किया जाता है।
उपयोग विधि :
इस काढ़े की पांच लीटर मात्रा को 95 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे करें। यदि 5 दिनों तक भी कीटों का आक्रमण नहीं रुकता तो फिर से स्प्रे करें। इसके छिड़काव से उपरोक्त कीटों के हमले की समस्या का समाधान हो जाएगा।
मिट्टी के कीटों के नियंत्रण के लिए :
किसानों की आमतौर पर यह समस्या रहती है कि उनके खेत में दीमक, चींटी तथा अन्य रेंगने वाले कीटों की भरमार रहती है। किसानों को चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। इन कीटों की रोकथाम के लिए कीटनाशक सुपर काढ़े की 5 लीटर की मात्रा को खेत में पानी के साथ प्रवाहित करें। 100 लीटर पानी में मिलाकर सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करें। इस सुपर काढ़े से फसल में पदगलन व फफूंद जैसी बीमारियों की रोकथाम के साथ उपरोक्त कीटों का नियंत्रण भी हो जाएगा। पदगलन की रोकथाम के लिए बाजार में बिकने वाला नीम का तेल भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
जैविक तरीके से बीज उपचार :
एक किसान के लिए सबसे पहले कार्यों में बीज का उपचार अति जरूरी है क्योंकि यदि बीज का उपचार ही नहीं किया गया तो किसान की खेती अधूरी ही रहती है। बीज के उपचार के लिए 15 लीटर पानी में 2 लीटर लस्सी (छाछ), 2 लीटर गोमूत्र व आधा किलो नमक का घोल तैयार करके 10 किलो बीज को 3 घंटे तक भिगोए। इसके बाद ही बुवाई करें यह सबसे सस्ता एवं कारगर तरीका है। बागवानी करने वाले किसानों के लिए भी यह तरीका बहुत ही उपयोगी है। बागवानी में तैयार पौध को लगाने से पहले पौधों की जड़ों को दो-तीन घंटे इस गोल में भिगोए।पौधा बीमारियों से बचा रहेगा।
ग्रीन मैन्यूरिंग (हरी खाद):

ग्रीन मैन्यूरिंग से अभिप्राय खेत में खड़ी ढांचे एवं मूंग की फसल को ट्रैक्टर की सहायता से मिट्टी में दबाना ग्रीन मैन्यूरिंग होता है। इस विधि से खेत में नाइट्रोजन की कमी दूर हो जाती है। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है। फसल में चमक व पौधे का फुटव ज्यादा होता है। यह सो प्रतिशत कारगर विधि है।
रसायनों से जैविक फसल को कैसे बचाया जा सकता है?
जो किसान जैविक खेती कर रहा है और उसका पड़ोसी किसान रसायनों का इस्तेमाल करता है तो उसका खेत साथ लगने के कारण जैविक खेती पर रसायनों का प्रभाव भी पड़ेगा। इस प्रभाव को रोकने के लिए किसान अपने खेत की मेढ़ से 10 फीट खेत खाली छोड़ दे। खेत खाली छोड़ने से दूसरे खेत में किए गए रसायनों के छिड़काव का असर जैविक फसल पर नहीं पड़ेगा क्योंकि जो 10 फीट की जगह छोड़ी गई है दूसरे खेत से आने वाले रसायन उस जगह में ही रह जाते हैं यानी वह बफर जॉन कहलाता है। जैविक खेत में सिंचाई के लिए लगाए जाने वाला पानी का खाल भी अलग होना चाहिए ताकि रसायन के प्रयोग वाले खेत का पानी जैविक खेत में न आ सके। इस प्रकार किसान अपनी फसल को रसायनों से बचा सकता है।
जैविक प्रमाणीकरण :
जैविक प्रमाणीकरण उसे प्रक्रिया को कहते हैं। जिसके तहत राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय स्तर की संस्थाएं यह तय करती हैं कि खेत में की जाने वाली खेती जैविक नियमों के आधार पर की गई है या नहीं। जैविक प्रमाणीकरण के तहत पैदा किया गया उत्पाद बाजार में अपनी अलग पहचान रखता है। यह उत्पाद और उपभोक्ता के विश्वास को कायम रखना है। किसी मान्यता प्राप्त जैविक प्रमाणीकरण संस्था से अपने खेत को प्रमाणित करवा कर किसान अपना जैविक उत्पाद ज्यादा दामों में बेच सकता है।
पशुओं के लिए चारा भी जैविक :
जब हमारे लिए जैविक भोजन प्राप्त होने लगेगा तो हमारे पशुओं के लिए क्यों नहीं ? यह भी एक बड़ा सवाल है क्योंकि पशुओं से हमें दूध प्राप्त होता है। यदि हम अपने पशुओं को रसायनों के इस्तेमाल वाला चारा खिलाते रहेंगे तब तक हमारा भोजन भी शुद्ध नहीं समझा जाएगा। जिस प्रकार अन्य फसलों को रसायन मुक्त किया है, उसी प्रकार पशुओं के चारे को भी रसायन मुक्त बनाना होगा तभी जाकर हमारा भोजन जैविक भोजन कहलाएगा।