आधुनिक युग में जैविक खेती की आवश्यकता ।

एक समय था जब हम पारम्परिक खेती से उत्पन्न अनाज खाते थे, शरीर निरोग रहता था। रोग बिल्कुल ही कम होते थे। मानव ही नहीं पशुओं में भी किसी बीमारी के होने का नाम तक नहीं था। हमारे पूर्वज हष्ट-पुष्ट हुआ करते थे। जितनी सहनशक्ति उनमें थी आज के आधुनिक समाज में उतनी सहनशक्ति नहीं रह गई है। क्या कभी आपने सोचा है कि मानव के उत्पन्न इन विकारों के पीछे कौन-सा कारण जिम्मेदार है? इस सवाल का जवाब बहुत ही कम लोगों को मालूम होगा

एक प्रसिद्ध कहावत है :—
“जैसा खाए अन्न वैसा हो मन” यह कहावत बिल्कुल सत्य सिद्ध होती है। हमारे द्वारा खाया गया भोजन ही हमारे शरीर और बुद्धि के विकास के लिए सहायक होता है।

आज के आधुनिक युग में मानव ने विकास तो खूब किया है, परन्तु भोजन में वह स्वाद खो रहा है। इस ओर उचित निर्देशन नहीं मिला है। आज हम जो भोजन कर रहे हैं, उनमें रसायनों की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है। ये रसायन ही हमारे शारीरिक व मानसिक विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं । पारम्परागत खेती अर्थात् जैविक खेती की ओर किसानों को ले जाना है ।जैविक उपयोगों व संसाधनों के उपयोगों में भी हमें रासायनिक खेती के मुकाबले अधिक अनाज उत्पन्न करने होंगे।

जैविक खेती आखिर है क्या ?

जैव उत्पादों से तैयार खेती को ही जैविक खेती कहा जाता है। आज देखने में यह आ रहा है कि आधुनिक युग में कृषि विज्ञान ने अनाज उत्पन्न में क्रांति का आगाज तो कर दिया है लेकिन इसके साथ कई समस्याएं आम आदमी के लिए पैदा कर दी है। किसानों के साथ-साथ सरकार भी रासायनिक खेती का विकल्प खोजने में प्रयासरत है।

संक्षिप्त में जैविक खेती ही रासायनिक खेती के विकल्प के रूप में उभर कर सामने आई है। जैविक खेती में किसानों को घर पर ही देसी खाद दवाइयां, कीटनाशक तैयार करने का विस्तार से विवरण बताया जाएगा। इसमें गोबर की खाद केंचुए की खाद, हर्बल स्प्रे, तथा अन्य कीटनाशक स्प्रे तैयार करने की पूरी जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी। यही जैविक खेती के आधार होंगे इन्हीं उत्पादों का प्रयोग जैविक खेती में किया जाता है। परंपरागत तरीके से ही की जाने वाली खेती कोई जैविक खेती कहा जाता है।

महंगी होती खेती :

एक समय था जब किसान अपने साधनों का प्रयोग अपने बल पर करता था। समय बदलता गया और खेती में रासायनिक खाद्य एवं दवाइयां नई तकनीक बाजार की बढ़ती मांग ने खेती करने के सारे तरीकों को बदल दिया। कई सालों तक तो किसानों को इस खेती करने में लाभ पहुंचता रहा लेकिन अब खेतों में डाले जाने वाले उत्पादों के रेट में वृद्धि होने के कारण किसानों को खेती घाटे का सौदा लगने लगी है। आज प्रत्येक किसान खेती में बढ़ती लागत के कारण परेशान है और अब नए विकल्प ढूंढना उनकी मजबूरी है। जैविक खेती ही इन सब का हल है।

घर पर ही बनाए जाने वाले जैविक उत्पाद :

किसान अपने घर या खेत में जैविक इनपुट्स तैयार कर सकते हैं जिनका विवरण इस प्रकार से है :

1 वर्मी कंपोस्ट खाद (केंचुए से तैयार खाद)

2 भूमि अमृत

3 हर्बल छिड़काव

4 गड्ढा खाद

वर्मी कंपोस्ट (केंचुए से तैयार खाद) :

वर्मी कंपोस्ट केंचुए से बनी खाद को कहते हैं। यह जमीन की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने के काम आती है। यह जमीन में मित्र कीटों में वृद्धि करती है तथा फसल के लिए जरूरी पोषक तत्वों की कमी को भी पूरा करती है।

वर्मी कंपोस्ट बनाने की विधि :

किसान अपने खेत में सबसे पहले जमीन पर छाया के नीचे अपनी जरूरत के अनुसार बेड बना ले। एक बेड की लंबाई 15 फीट, चौड़ाई 4 फीट तथा एक से दो फीट ऊंचाई होनी चाहिए। जहां पर बेड बनाना हो उस जगह पर यदि बजरी डाल दी जाए तो ठीक है नहीं तो जमीन की 3 इंच तक की मिट्टी को निकालकर फिर सूखे पत्ते या घास की तह लगाए। उसके बाद एक महीना पुराना गोबर बेड में डालें। पूरे गोबर को एक से दो फीट तक की बराबर ऊंचाई तक एक समान कर ले। फिर गोबर पर पानी का छिड़काव करें। तीन दिनों तक बेड में कुछ न करें। उसके बाद जरूरत के अनुसार केंचुए छोड़ दें। बेड में नमी की मात्रा को बरकरार रखने के लिए पानी का छिड़काव करते रहे। वर्मी कंपोस्ट के बेड में नमी की मात्रा को जांचने के लिए बेड से थोड़ा खाद हाथ में ले यदि पानी न टपके तो यह है मान लेना चाहिए कि बेड में नमी की मात्रा कम है। इसमें तुरंत पानी का छिड़काव करें।

      बेड को सूखी घास पत्तों से ढक कर रखें। हो सके तो पटसन की बनी बोरी यदि उसके ऊपर बिछा दे तो अच्छा होगा। प्रत्येक दिन पानी के छिड़काव से 30-40 दिनों के अंदर केंचुए गोबर को खाद के रूप में परिवर्तित कर देंगे। केंचुए की खाद को निकालने के लिए बेड की ऊपरी सतह को लगभग 4 इंच तक खोद ले इससे केंचुए तो नीचे चले जाएंगे तथा उच्च क्वालिटी की वर्मी कंपोस्ट खाद प्राप्त हो जाएगी।

केंचुए की खाद के फायदे :

रासायनिक उर्वरो के प्रयोग से लगातार भूमि की उपजाऊ शक्ति कम होती जा रही है। मित्र कीटों की संख्या में भी कमी आ रही है। केंचुए की खाद के उपयोग से मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि की जा सकती है। वर्मी कंपोस्ट से जमीन में पानी की मात्रा की कमी को भी पूरा किया जा सकता है। यह फसल के लिए जरूरी सभी आवश्यक तत्वों की कमी को भी पूरा करता है।

रासायनिक खादों से सस्ती :

वर्मी कंपोस्ट रासायनिक खादों से सस्ती होती है बाजार में बिकने वाली नाइट्रोजन व फास्फोरस युक्त खाद बहुत महंगी होती है। लेकिन केंचुए से तैयार खाद में मात्र 200 से 300 रुपए तक  खर्चा आता है और लंबे समय तक भूमि की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है।

भूमि-अमृत :

जैसा कि नाम से ज्ञात होता है कि जिस प्रकार किसी बीमार व्यक्ति को कोई दवा ठीक करके उसे नया जीवन प्रदान करती है और वही दवा उस व्यक्ति के लिए अमृत बन जाती है। ठीक उसी प्रकार भूमि-अमृत भी बेजान पड़ी भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाकर भूमि को बीमार होने से बचाती है।

भूमि-अमृत बनाने के लिए आवश्यक सामग्री (प्रति एकड़ के हिसाब से) :

1. गाय का गोबर   : 15 किलोग्राम

2. गोमूत्र   :  7 से 10 लीटर

3. गुड़ (पुराना)     :  2 से 2.5 किलोग्राम

4. बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी   :  2 किलोग्राम

5. बेसन        :  2 किलोग्राम

6. पानी         :  200 से 225 लीटर

7.  एक ड्रम प्लास्टिक या सीमेंट का

उपरोक्त पदार्थों को लेकर एक स्थान पर इकट्ठा कर ले। ड्रम में 50 लीटर पानी लें। इसमें 15 किलोग्राम गाय का गोबर मिट्टी तथा बेसन डाल दें। फिर इसको किसी छड़ी की सहायता से कई बार घुमाते रहे। इसके बाद इसमें 10 लीटर गाय का मूत्र भी डाल दे और दोबारा अच्छी तरह से घुमाए। इसके पश्चात ड्रम को कपड़े से बांधकर टाइट करें। दूसरे दिन डंडे की सहायता से घोल को हिलाए। 15 दिन बाद तैयार घोल को 200 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ फसल में प्रयोग करें। भूमि-अमृत का प्रयोग केवल एक सप्ताह के अंदर करें।

प्रयोग विधि :

जिस खेत में यह घोल डालना है उसमें ड्रम को खेत के मुहाने पर टेढ़ा करके रख दे और ध्यान रखें की ड्रम में से घोल थोड़ा-थोड़ा निकले और खाल में ट्यूबल का पानी छोड़ दे। जिसकी सहायता से खाल के पानी के साथ ड्रम में से घोल जरा-जरा सा रिसकर खेत में जाता रहे। इस प्रकार भूमि-अमृत से फसल में दोगुना पुलाव भी होगा और पौधे की जड़े भी मजबूत हो जाएगी। फसल में आने वाली बीमारियों से भी बचाया जा सकता है। इस घोल के डालने से जहां भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है वही यह घोल भूमि में 3 सालों तक सक्रिय रहेगा। इसके प्रयोग से बंजर जमीन भी सोना उगलने लगेगी और किसान ज्यादा से ज्यादा फसल का लाभ ले सकेंगे।

हर्बल छिड़काव :

जिस प्रकार भूमि अमृत से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जाती है उसी प्रकार फसलों में लगने वाली बीमारियों से बचाव के लिए परंपरागत तरीके से हर्बल कीटनाशक तैयार किया जाता है। हर्बल कीटनाशक तैयार करने की विधि इस प्रकार है :

1. ड्रम या घड़ा : 20 से 25 लीटर तक का

2. गोमूत्र  : 10 से 12 लीटर

3. नीम की पत्तियां  : 250 ग्राम

4. आख के डोडे व पत्ते : 250 ग्राम

5.  प्याज   : 100 से 150 ग्राम

6. अदरक   : 100 ग्राम

7. लहसुन   : 100 ग्राम

8. हरी मिर्च   : 100 ग्राम

9.  लोंग    : 25 ग्राम

10. धतूरे के डोडे   : 5

हर्बल छिड़काव बनाने की विधि :

सर्वप्रथम प्लास्टिक का ड्रम या घड़ा ले। इसे 4 या 5 लीटर गोमूत्र से भरे। अदरक, प्याज, हरी मिर्च, वह लौंग को बारीक पीसकर घड़े में भर ले। बाकी पतियों को काटकर डाल दे और उस बर्तन को गोमूत्र से भर दें। बर्तन को गले तक न भरे। घड़े को 5 इंच तक ऊपर से खाली रहने दे, क्योंकि जो सामग्री उसमें डाली गई है उसका भी पुलाव होगा और ज्यादा घड़ा भरा होने के कारण गोमूत्र बाहर निकल सकता है। इसके बाद घड़े के मुंह को कपड़े के साथ बांध दें और मिट्टी से लेप कर दें। घड़े को किसी छाया वाले स्थान पर रख दें। तीन या चार दिन दोनों में घड़े का निरीक्षण अवश्य करें। घड़े की मुख को खोले नहीं बल्कि देखें कि घड़े से रिसाव तो नहीं हो रहा है। यदि रिसाव हो रहा है तो तुरंत घड़े को बदल दें। 30 से 40 दिनों के अंदर हर्बल कीटनाशक दवाई तैयार हो जाएगी। तैयार दवाई को कपड़े से छान कर रख ले। इस तैयार कीटनाशक को बच्चों के संपर्क से दूर रखें।

उपयोग विधि :

फसल में किसी बीमारी के होने पर इस कीटनाशक का स्प्रे करें।

हर्बल दवाई को हर तरह की अनाज वाली फैसले जैसे गेहूं, धान, बाजरा, ज्वार, जौ तथा जई में इस्तेमाल किया जाता है। हर प्रकार की सब्जी तथा फलों एवं सरसों की फसलों में लगने वाले कीटों के नियंत्रण के लिए हर्बल कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है।

इस प्रकार किसान घर पर ही हर्बल कीटनाशक दवाई तैयार करके बाजार में बिकने वाली महंगी रासायनिक दवाइओ के खर्चे से बच सकते हैं और हर्बल स्प्रे से कीट नियंत्रण कर सकते हैं।

गड्ढा खाद :

खेत के किसी एक कोने में 15 फीट लंबा 15 फीट चौड़ा वह 4 फीट गहरा गड्ढा खोद ले।प्रतिदिन इस गड्ढे में एक फिट की ऊंचाई तक गोबर डालें। खेत पर उपलब्ध कचरा एवं पत्तियों की एक परत गोबर पर बनाएं। इसके बाद पानी का स्प्रे करें। फिर 2 फीट तक गोबर डालें इसके बाद इस प्रक्रिया को दोहराएं यानी कचरे में पत्तियों की एक परत डालें एक सप्ताह बाद अंत में गोबर डालकर पानी का छिड़काव करें ऊपर से गोबर की परत को मिट्टी के कीचड़ से लिपाई-पुताई कर दें। 40 से 45 दिनों के अंदर गड्ढा खाद तैयार हो जाएगी। जहां किसान एक एकड़ में 6 महीने तक गली सड़ी गोबर की 20-25 ट्रालियां डालते हैं वही गड्ढा विधि से तैयार खाद की मात्र 8 से 9 ट्रालियां प्रति एकड़ के हिसाब से पर्याप्त रहती है।

गड्ढा खाद के लाभ :

आमतौर पर यह देखा गया है कि आम गोबर की खाद से एक प्रतिशत से ज्यादा नाइट्रोजन नहीं मिल सकती लेकिन कंपोस्ट खाद से तो 2 प्रतिशत नाइट्रोजन पोटाश व फास्फोरस की मात्रा बढ़ सकती है। जमीन की उपजाऊ शक्ति में तो वृद्धि होती ही है साथ ही जमीन की ऊपरी परत नरम भी हो जाती है। यह गड्ढा खाद 3 साल तक खेत की आप जो शक्ति को बनाए रखती है। 3 साल के बाद किसान फिर से उपरोक्त विधि के अनुसार खाद को खेत में डाल सकते हैं।

किसान उपरोक्त विधि से तैयार हर्बल इनपुट्स को अपने खेतों में डालकर जमीन की उपजाऊ शक्ति को बढ़ा सकते हैं साथ ही यह जैविक इनपुट्स पर्यावरण की रक्षा भी करते हैं।

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